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कैसे तीर चलाऊंगा मैं#लेखनी दैनिक काव्य प्रतियोगिता -23-Nov-2022


विष्णुपद छंद गीत(१६,१० पदांत सलगा १२२
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राह दिखाओ कृष्णा मुझको, रण में सब अपने।
कैसे  तीर चलाऊंगा मैं, टूटे हैं सपने।।

असमंजस में फसा हुआ हूँ, नहीं मुझे लड़ना।
तुम ही राह बताओ हे प्रभु, क्या अब है करना।।
जब अपने ही तो हक छीने, गैर किया सबने।
कैसे तीर चलाऊंगा मैं , टूटे हैं सपने।।(१)

कैसे भूलूंँ अपमानों को, बड़ा कठिन लगता।
कभी द्रोपदी चीर हरण को, भूल नहीं सकता।।
वो ज्वाला नफरत की कान्हा, लगती है जलने।
कैसे तीर चलाऊंगा मैं, टूटे हैं सपने।।(२)

जीत हार से कब घबराया , पर अब हूँ डरता।
भाग यहाँ से अब तो जाऊँ , ऐसा मन करता।।
सभी षड़यंत्रकारी होंगे, कब सोचा हमने।
कैसे तीर चलाऊंगा मैं, टूटे हैं सपने।।(३)
***
कविता झा'काव्या'
रांची झारखंड

#लेखनी

#लेखनी दैनिक ष


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3 Comments

Abhinav ji

24-Nov-2022 09:20 AM

Nice 👍👍👍

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Muskan khan

23-Nov-2022 06:40 PM

Very nice 👍

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